Monday, December 31, 2012



 हम सब अपराधी हैं

हम समाज को दोष देते समय
 
एक उंगली सामने की ओर  उठाते हैं
तो तीन उंगलियाँ हमारे अपनी तरफ होती हैं
हाँ हम सब अपराधी हैं, भ्रष्ट हैं
आईने के सामने खड़े हो कर
क्या हम स्वयं से नजरें मिला पाते  हैं?
कितना सहज है उपदेश और गलियाँ देना
कितना कठिन है आदर्शों पर चलना
हम ही तो हैं जो बिना तैयारी  के कक्षा में जाते हैं
और किस्सों से विद्यार्थियों को बहलाते हैं

*   कितने आराम से हम कह देते हैं
आज मूड नहीं क्लास लेने का बिना परवाह किये
कि हमारे एक घंटे क्लास न लेने से
साठ विद्यार्थियों के साठ घंटे बर्बाद हो जायेंगे
क्या यह भ्रष्टाचार नहीं?
अपने बच्चे को एडमिशन और नौकरी दिलाने के लिए
या मनचाही जगह पर स्थानांतरण के लिए
रिश्वत देने के लिए कौन जिम्मेदार है?
हममें से ही कोई इंजिनियर सड़कें,पुल और बिल्डिंग बनाते समय
सीमेंट की जगह बालू मिलाता है
 
और उसके ध्वस्त होने पर देश को कोसता है
हममें से कोई डॉक्टर बेवजह मरीजों की
*   पच्चीस तरह की जांचें कराता  है
और डाइगनोस्टिक सेंटरों से मोटा कमीशन खाता है
क्या यह भ्रष्टाचार नहीं?
हममें से कोई एक पुलिस ऑफिसर
अपने कर्त्तव्य से विमुख हो जाता है
उसकी ऑंखें तब खुलती हैं
जब किसी महिला के अस्मत और जिंदगी दांव पर लग जाती है
और उसकी नौकरी पर बन आती है
अपने उच्चाधिकारियों और प्रभावशाली लोगों को
हम मोटे उपहार देते हैं
की हमारा काम आसानी से होता रहे
अपने घर का कचरा साफ़ कर
सामने गली और सड़क पर डालने वाले
 
हम चिल्लाते हैं कि   देश गन्दा है 
*   स्वयं को हम नहीं बदलते
अनाचार ,दुराचार , भ्रष्टाचार और अत्याचार
हम करते हैं और  मौन हो सहते हैं
क्या हम सब अपराधी नहीं?
इस बीमार देश को और बीमार करने के?

Sunday, December 30, 2012

नव वर्ष की शुभकामनायें  

फिर से नया वर्ष  आ गया
हर वर्ष की तरह
कैलेन्डर के पन्ने बदले
दिसम्बर माह से जनवरी हुआ
हर वर्ष की तरह
फोने कॉल, ग्रीटिंग कार्ड ,ई मेल .....
वही घिसी पिटी उधार  ली हुयी भाषा
फ़ॉर्वर्डेड  एस एम् एस और ई मेल
क्या बदला ?तारीख के अलावा
समाज में ?हमारे दिलों में?
सब कुछ तो वैसा ही है
भ्रष्टाचार ,अनाचार,दुराचार
घरेलू  हिंसा,दहेज़ हत्या ,चोरी -डकैती
हत्या लूटमार ........
हर वर्ष की तरह
हमारे दिलों में
ईर्ष्या ,द्वेष ,राजनीति  ,
घृणा ,छल कपट
कुछ भी तो नहीं बदला .
नया वर्ष  तो तब होता
जब हम ज्यादा जागरूक होते
अपने कर्तव्यों के प्रति
देश के प्रति ...समाज के प्रति
कृत संकल्प होते
एक नए समाज की स्थापना के लिए
जहाँ हर व्यक्ति को एहसास हो
सुरक्षा का ,शांति का ,प्रेम का
लेकिन नहीं 
आज 31 दिसम्बर की रात
फिर हम अपने परिवार के साथ
 किसी महंगे रेस्टुरेंट में चले जायेंगे
वहां नाच गा  आएंगे
पैसे फूंक कर खुश हो आएंगे
हो जायेगा नव वर्ष का उत्सव
हर वर्ष की तरह
सब कुछ वैसा ही चलता रहेगा
हमारे देश में ,समाज में ,हमारे दिलों में
हर वर्ष की तरह
इस नकारात्मकता में भी
सकारात्मक सोच रखना चाहती हूँ
शुभकामनायें हैं सभी को
थोडा हम और चैतन्य हों
बदल डालें स्वयं को ,देश को ,समाज को
न हो नवीन वर्ष
घिस पिटा
हर वर्ष की तरह ........
                                   मंजुश्री गुप्ता
 

Saturday, December 29, 2012


कविता की मृत्यु 
एक बच्चा जनमता  है
आश्चर्य सृष्टि का
आँखों में कौतूहल  लिये
बड़ा होता है
नित नए आश्चर्य
जन्म लेती है कविता
वह कवि  बन जाता है
अपनी कल्पनाओं की
रंगीन दुनिया में खोया हुआ
बच्चा बड़ा और बड़ा होता जाता है
दुनिया के बदलते रंगों को
महसूसता है-भोगता है
छल कपट ,धोखा
और रिश्तों के दंश -
टूटते हैं खुशनुमा भ्रम
दुनिया होती जाती है बदरंग
जिंदगी छलती है बार बार
व्यक्ति जिन्दा रहता है कवि
 मर जाता है
और कविता भी .