Saturday, April 20, 2013

कई बार सभी को संतुष्ट करने की चेष्टा में व्यक्ति यह नहीं समझ पाता  कि वह स्वयं क्या चाहता है?उसे स्वयं किस बात से ख़ुशी मिलती  है?सबकी दृष्टि में अच्छा बनने की चेष्टा में वह स्वयं खंड खंड हो कर रह जाता है 

Tuesday, April 16, 2013


शुभचिंतक 

मन के विचार 
कुछ बुरे कुछ अच्छे 
गुत्थम गुत्था हो जाते हैं 
जैसे डिब्बे में बंद 
अलग अलग रंगों के 
रेशमी धागों के लच्छे 
तुम एक कुशल कशीदाकार की तरह 
अपने शब्दों के मखमली  स्पर्श से 
धीरे धीरे धीरज से सुलझाती हो 
अलग अलग धागों को !
कभी गांठों को तोड़ती  भी हो 
अपने कठोर शब्दों से 
थोडा दर्द जरूर होता है 
मगर विचारों के रेशमी धागे
 सुलझ जाते हैं 
दिखने लगते हैं धागों के अलग अलग रंग
 और वे फिर तैयार हो जाते हैं 
जीवन वस्त्र पर  
सुन्दर नयी फुलकारी  के लिए !
                            मंजुश्री