Tuesday, July 24, 2012

जीवन - मृत्यु
शरीर की कलम में
प्राणों की स्याही से-
निकलते शब्दों के साथ
लिखी जाती हैं
जीवन की कहानियां
कुछ लघु कथाएं
कुछ उपन्यास !
कभी कभी
न जाने कब ,कैसे एकाएक
सूख जाती है
प्राणों की स्याही
बंद हो जाता है शब्दों का प्रवाह
जिंदगी की अधूरी कहानी पर
लग जाता है पूर्ण विराम.
कलम टूट जाती है
कभी न जुड़ने के लिए
कुछ लम्बी कहानियां
घिसटती रहती हैं
टूटे फूटे अर्थ हीन शब्दों के साथ
ख़त्म होने के इंतजार में

2 comments:

  1. आह!!!
    गहन चिंतन....
    बेहतरीन कृति

    अनु

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  2. धन्यवाद अनु .अनुभूतियाँ ही सघन हो शब्दों में ढल कविता का रूप ले लेती हैं

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