क्यों सहें हम?
आग उगलती
भट्टी सा
कंक्रीट का शहर
जहाँ देखो वहां नर मुंड....
भीड़ ही भीड़
मैले पानी की नदी
टूटी सड़कें
गड्ढों से भरी
नलों में पानी नहीं
घरों में बिजली नहीं
दिलों में प्यार नहीं
हर तरफ चूहों की तरह
न जाने कहाँ दौड़ते लोग
एक दूसरे को धक्का देते
आगे निकलने की कोशिश
चोरी ,डकैती ,हत्या
हिसा ,लूट ,बलात्कार
की घटनाओ से भरे अखबार
ये सब है ......
सफ़ेद कपड़ों में
ए सी कमरों में बैठे
भ्रष्टाचारी लुटेरे.....
हमारी किस्मत के नियंताओं
का चमत्कार
कब तक और क्यों
सहते रहें ये सब हम
उठो जागो देशवासियों
अपनी किस्मत
अपने हाथ में लो
देश और समाज को
बदलने के पहले
खुद को बदलो
न रिश्वत दो
न रिश्वत लो
एक साफ़ सुथरे समाज की
यही है पुकार .
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