Tuesday, September 30, 2014

अहंकार 
राम मनोहर शास्त्री गुस्से से आग बबूला हो रहे थे .... अभी तक वे पूरे घर पर एकछत्र शासन करते आ रहे थे। आज जैसे उनकी सत्ता को किसी ने चुनौती दे दी थी। उनका अहंकार बुरी तरह से आहत हुआ था। 
तीन लड़कों और एक बेटी के पिता ....भरा पूरा परिवार!हर बच्चे को उन्होंने अपनी मनमर्जी से जिंदगी जीने को बाध्य किया था। बड़का बहुत अच्छा गाना गाता था और संगीत के क्षेत्र में कुछ कर दिखाना चाहता था। … मगर पिता ने जबर्दस्ती उसे डॉक्टर बनने पर बाध्य किया। उनके भय से वो घर में भी गुनगुना नहीं सकता। और कभी गाना गाना होता है तो वो कमरा बंद करके पूरे परदे खींच कर के धीमी आवाज में गाता। मंझले को जबर्दस्ती इंजिनीयरिंग करने पर बाध्य किया ,जबकि वो एक लेखक बनना चाहता था और पत्रकारिता करना चाहता था। मुन्नी बी ए के बाद आगे पढ़ना चाहती थी मगरउन्होंने उसकी शादी जबर्दस्ती अपनी पसंद के लड़के से कर दी। ।रोते रोते वो ससुराल चली गयी। और वहाँ भी घर वालों कि मर्जी के आगे दब दब के जीती रही। छोटे की बारहवी की परीक्षा आज ख़त्म हुयी थी। पिता राममनोहर उसे लगातार बाध्य कर रहे थे कि इंजीनियरिंग की कोचिंग ले ले। मगर उसका कलाकार मन तो पेंटिंग में ज्यादा जमता था। जब देखो तब ब्रश उठा कर कागजों को लाल पीला करता रहता था।आये दिन उसके पेंटिंग के शौक को लेकर घर में तनतनी होती रहती। माँ सरोज जी चाह कर भी कुछ नहीं कर पाती थी ,वो स्वयं पति के आतंक के साये तले जी रही थी।
आज शहर की एक प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थान में एंट्रेंस परीक्षा थी। उसी समय एक कला संस्थांन पेंटिंग कम्पटीशन करा रहा था। उसके आधार पर आगे के उच्चतर अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति भी मिलनी थी। उसमे वे लोग पहले का पेंटिंग का कार्य भी देखने वाले थे। दो दिनों से छोटका अपनी पेंटिंग्स सहेजने में लगा हुआ था। जब जब राममनोहर जी उसके कमरे कि तरफ जाते उनके तन बदन में आग लग जाती। साम, दाम ,दंड भेद कैसे भी कर के वे इस कोशिश में थे की छोटका इंजीनियरिंग के कोचिंग सेंटर का एंट्रेंस एग्जाम दे दे। मगर वो कैसे भी नहीं मान रहा था। कम्पटीशन के एक दिन पहले जबर्दस्त हंगामा हो गया।
शाम को राम मनोहर जी छोटके के कमरे में गए तो वह अपनी पुरानी पेंटिंग को साफ़ कर रहा था। राम मनोहर जी ने कड़ाई से पूछा" तो तुम इंजीनियरिंग का एंट्रेंस एग्जाम नहीं दे रहे हो?"
छोटका ने सर झुकाये झुकाये ही शांति से जवाब दिया "नहीं ! "
राम मनोहर जी के तन बदन में आग लग गयी। उसके हाथ से उन्होंने पेंटिंग ले ली और चिल्लाते हुए कहा "इसे मैं फाड़ कर फेंक देता हूँ,देखता हूँ कैसे नहीं जाता एंट्रेंस एग्जाम देने!"
छोटका सर उठा कर उनके सामने तन कर खड़ा हो गया अपनी पेंटिंग वापस छीन ली और चिल्लाया … "पापा बस! बहुत हो गया। मैं वही करूंगा जो मुझे अच्छा लगता है। बड़े और मंझले भैया को मैंने घुट घुट कर जीते देखा है। मैं ऐसा नहीं कर सकता !आपका मैं बहुत सम्मान करता हूँ मगर अपनी जिंदगी मैं आपकेअनुसार नहीं जी सकता। मेरी पेंटिंग को अपने जरा भी नुक्सान पहुचाया तो मैं इस घर से निकल जाउंगा।आप मेरी क्रिएटिविटी का अपमान कर रहे हैं!"
राम मनोहर जी सिटपिटा गए। और आहत अहंकार के साथ चुपचाप उसके कमरे के बाहर निकल गए।
डॉ मंजुश्री गुप्ता
चिन्ता
मनीषा के हाथों में बेटे का छठवीं कक्षा का रिपोर्ट कार्ड था। तीन विषयों में सी ग्रेड देखकर पहले तो वह बेटे पर चिल्लाई ,बहुत गुस्सा किया, उसके बाद फूट-फूट कर रो पड़ी। प्रिया की बेटी के ग्रेडस देखो - हर विषय में ’ए’ ग्रेड मिली है। एक रोहन है - सारा दिन कम्प्यूटर गेम्स और वीडियो और टी.वी! मन होता है सब तोड़ के फेंक दो!पता नहीं जीवन में कुछ कर भी पायेगा या नहीं?इतने सपने संजो रखें हैं इसे लेकर!
सारा दिन वह तनावग्रस्त रही। पता नही क्या होगा इस लड़के का! इसका भविष्य तो अंधकार मय है।
दूसरे दिन बाजार में उसकी एक पुरानी सहेली नीता एकाएक बाजार में मिल गई। लगभग पांच साल बाद! घर-गृहस्थी के काम में दोनो ऐसे उलझी कि मिलना ही नही हुआ। दोनो एक दूसरे को देखकर-चहक उठी। नीता ने कहा - ” चल - रेस्टोरेन्ट में चल कर काफी पीते है। नीता के चेहरे पर संतोष और प्रसन्नता की झलक मनीषा को दिखाई दे रही थी।
बातों बातों में नीता ने मनीषा से पूछा - तू इतनी तनावग्रस्त क्यों दिख रही है? क्या हुआ?
मनीषा ने उदासी से बताया- क्या बताऊँ - ”बेटा पढ़ता लिखता ही नहीं है - तीन सब्जेक्ट्स में ’सी ग्रेड’ आ गई है।
तेरे कितने बच्चे है - और क्या कर रहे हैं? मनीषा ने नीता से पूछा
नीता ने कहा ”मेरा एक ही बेटा है 10 साल का !मगर वह मानसिक रूप से विक्षिप्त है। हमारी बहुत कोशिशों और इलाज के बाद कल उसने पहली बार - मुझे ’मम्मा’ कहा ! इसलिए मैं इतना खुश हूँ।
मंजुश्री

Friday, September 5, 2014

ज़िन्दगी की किताब 

अपनी ज़िन्दगी की किताब तू ऐसी लिख कि उसमे जीने का हो खजाना 
मुश्किलें राह में हों कितनी ही या ज़िन्दगी ग़मों का हो अफसाना 
खुद के कदमो पर रख भरोसा मेरे दोस्त तू आगे ही बढ़ता चल 
दिल में हो हिम्मत और हौसला और मुस्कुराते लबों पर हो तराना 


Thursday, September 4, 2014

शिक्षक दिवस पर------

शिक्षक किसी भी समाज की रीढ़ की हड्डी होता है। वह भावी पीढ़ी का निर्माता और मील का पत्थर होता है।एक अच्छे शिक्षक के लिए उसके सभी छात्र छात्राएं एक सामान होते हैं।   अपनी प्रेरणा और दृष्टि से वह प्रत्येक छात्र के भीतर से उसकी सर्वोत्तम क्षमता को तलाशने और  बाहर  लाने में सक्षम होता है।  आज प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक में छात्रों का शिक्षकों के प्रति और शिक्षकों का छात्रों के प्रति सामान्य नजरिया अत्यंत दुखद है। उसके लिए कुछ हद तक संस्थात्मक कारण  भी जिम्मेदार हैं जहाँ शिक्षक के शिक्षण कार्य को सर्वाधिक उपेक्षित किया जा रहा है. ऐसे समाज में छात्रों की गुणवत्ता में कमी होना लाजमी है। कहीं न कहीं कोर्स में शामिल विषय छात्रों व समय की आवश्यकता के अनुरूप नहीं हैं। आज शिक्षा के हर स्तर  पर बड़े बदलाव की आवश्यकता है।