Thursday, September 13, 2012

मौन का संवाद

मैं लिख रही हूँ
किताब
जिंदगी की यथार्थ कविताओं की
क्या तुम पढ़ सकते हो?
मेरी आँखों में तैरते शब्द?
सुन सकते हो?
आंसुओं से टपकते गीत
मुस्कान के पीछे छिपा हुआ
दर्द का संगीत?
समझ सकते हो?
हर रोटी के साथ सिंकती मेरी भावनाएं?
चख सकते हो
सब्जी में उतरा कविता का रस?
बच्चों को बड़ा करने में 
मैं लिख रही हूँ
जिंदगी का महाकाव्य
उस रचना में
क्या तुम पढ़ सकते हो 
मेरा अनलिखा नाम?
घर में करीने से सजी चीजें
मेरी भावनाओं की 
उथल पुथल से उपजे 
नए छंद हैं
शायद तुम्हे पुराने लगें!
मैं तो लिख रही हूँ यथार्थ की कविता
मगर क्या तुम इतने साक्षर हो?
कि पढ़ सको
मेरे मौन का संवाद?


4 comments:

  1. मेरे अनुभव में
    मौन से संवाद के लिए
    होना चाहिए एक सेतु
    मौन और मौन के बीच
    जरूरी नहीं कि वह सेतु
    अक्षरों का ही हो
    कोरे कागज पर
    ह्रदय से उछल कर
    आँखों की राह टपक कर
    और सूखकर अश्क छोड़ गए
    आँसू भी
    सह्रदय की अंतर्करुणा को
    अभिभूत कर सकते हैं
    अश्कों में अतर्मौन उमड़ कर
    पिरोया और पुरा होना चाहिए.
    --शेषनाथ

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  2. मौन का संवाद पढ़ने के लिए जिस विद्द्या का ज्ञान होना ज़रूरी है वह बहुत कम लोगों में ही पाया जाता है।

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