Thursday, September 13, 2012


खंड खंड जिंदगी

खंड खंड जिंदगी
टुकड़ा टुकड़ा मैं!
जिंदगी का 
एक सिरा सँभालने की 
कोशिश करती हूँ
तो दूसरा छूट
जाता है..........
घर -परिवार
पति- बच्चे
सास -ससुर
नाते -रिश्तेदार
ऑफिस-बॉस 
ऊपर  से तीज -त्यौहारI
सुनती हो.....मम्मी....बहू...
की हमेशा लगती रहती है गुहार
और ऑफिस में अक्सर
बॉस की पड़ती है फटकार
इन सबके बीच
 'मैं ' गुम हो जाती हूँ
कोई नहीं पूछता 
अरे सुपर वुमन!
कहीं तुम भी तो नहीं हो बीमार?
खंड खंड जिंदगी
टुकड़ा टुकड़ा मैं
जिंदगी का 
एक सिरा सँभालने की 
कोशिश करती हूँ
तो दूसरा छूट
जाता है..........








2 comments:

  1. तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद संजय जी.

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