Sunday, November 11, 2012

आत्मदीप
काली अंधियारी रात
भयंकर झंझावात
वर्ष घनघोर प्रलयंकर
पूछती हूँ प्रश्न मैं घबराकर
है छुपा कहाँ आशा दिनकर?


मन ही कहता
क्यूँ भटके तू इधर उधर?
खुद तुझसे ही है आस किरण
तुझ जैसे होंगे कई भयभीत कातर
कर प्रज्ज्वलित पथ
स्वयं ही दीप बन !

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ

2 comments:

  1. प्रेरक प्रस्तुति

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  2. धन्यवाद राकेश जी

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