भारतीय नारी -अस्मिता की
तलाश
नारी को हमेशा से या तो देवी रूप में महिमा मंडित किया जाता है अथवा उसे दोयम दर्जे का प्राणी समझ कर व्यवहार किया जाता है.यत्र
नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता या ढोल गंवार शूद्र पशु नारी ये सब ताडन के अधिकारी..... या फिर यह कहा जाता है नारी नरक का द्वार है .ये दो सिरे की स्थितियां हैं.वस्तुतः नारी दिल ,दिमाग और देह से युक्त एक प्राणी मात्र है . समस्त गुण दोषों से युक्त .हर युग में हर प्रकार की नारियां मिलती हैं. ...यदि सीता और अहिल्या थी तो मंथरा और कैकेयी भी .
....विदुषी गार्गी और मैत्रेयि थी
तो नगर वधु
आम्रपाली भी ,पन्ना धाय ,रानी लक्ष्मी बाई ,सरोजिनी नायडू ,इंदिरा गाँधी ,महादेवी वर्मा , एम्
एस सुब्बुलक्ष्मी ,कल्पना चावला ,सायना नेहवाल ,किरण बेदी ,ऐश्वर्या राय ....भारतीय नारियों के लिए
कौन सा क्षेत्र अछूता रह
गया है ? वहीँ भंवरी देवी और फूलन
देवी जैसे चरित्र भी हैं
इन ख्याति प्राप्त नामों से परे ऐसी
ग्रामीण और शहरी महिलाएं भी हैं
,जो जिंदगी की
जद्दो जहद सहते हुए चुप चाप
अपने घरों में
अपने काम से
अपने योगदान दे रही
हैं .. मगर न तो उन्हें कृषक का दर्जा मिलता है न ही घर के कामो को राष्ट्रीय
आय में जोड़ा जाता है।अपने पति,बच्चों और परिवार के लिए वो अपना सर्वस्व न्योछावर कर देती हैं।ऐसी महिलाओं की
भी कमी नहीं है जो ऑफिसों स्कूलों और काल सेंटर में महानगरीय जीवन की आपा धापी
सहते हुए घर बाहर के सब काम करती हैं और कहीं न कहीं दोहरे शोषण की शिकार हो रही हैं ग्लैमर और पैसे की अंधी दौड़ में शारीरिक शोषण की शिकार ,गुमनामी के अँधेरे
में गुम नारियां भी हैं और इन जुल्मों के खिलाफ आवाज उठाने वाली नारियां भी।.
सृष्टि का
केंद्र है नारी !पुत्री ,बहिन ,पत्नी माँ ,सास ....परिवार में अनेक रूप हैं उसके ....मगर वो
अज डॉक्टर ,इंजीनियर
खिलाडी,पायलट, आईएएस ऑफिसर,कलाकार अदि अनेक रूपों में अपने आप को स्थापित कर रही है
और अपनी निजता की तलाश कर रही है।फिर भी आज भी नारी को वो स्थान नहीं मिल पाया है जो उसे
मिलना चाहिए।कन्या भ्रूण हत्या ,बाल विवाह,दहेज़ हत्या, घरेलू हिंसा ,यौन हिंसा ,असुरक्षा जैसी अनेक सामाजिक बुराइयों से भारतीय
नारी जूझ रही है .सरोगेट मदर या
किराये की कोख के रूप में गरीब महिलाओं के शोषण का एक नया रूप सामने आया है।
एक सवाल यह भी उठाया जाता है की पुरुषों के
क्षेत्र में प्रवेश कर स्त्रियों ने अपनी फेमिनिटी खो दी है और उनका विकास टॉम बॉय
की तरह हो रहा है।हमने लड़कियों को लड़कों की तरह पाल कर बड़ा गर्व किया .किन्तु क्या बेटों को भी घर
के काम सिखाये?इससे संतुलन तो बिगड़ना ही था।
यह संक्रमण काल चल रहा है।स्त्रियों और पुरुषों की भूमिका
में परिवर्तन हो रहे हैं। नारियों के लिए अब हम एक स्टीरियो टाइप लेकर नहीं चल सकते न ही एक
सामान्यीकरण कर सकते है .......स्त्रियों को जब तक हम मनुष्य के रूप में और उनके
व्यक्तिगत गुणों के साथ नहीं देखेंगे ....उनके प्रति न्याय नहीं कर सकते।जरूरत इसी
बात की है कि उनको शिक्षा के,रोजगार
के ,और अपने व्यक्तित्व के विकास के सभी अवसर प्रदान किये जाएँ ताकि वे
आर्थिक रूप से व सामाजिक रूप से ज्यादा सुदृढ़ बन सकें।
डा मंजुश्री गुप्ता
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