Monday, August 5, 2013

अद्भुत एहसास 

एक नन्हा शिशु 
जिसकी ऑंखें चमक जाती थी  
मुझे देखते ही 
माँ -माँ कर हुमकता था 
काम से घर लौटते ही 
गोद में आने को लपकता था 
स्कूल से घर लौटने 
पर भूख लगी भूख लगी 
कह कर  मचलता था 
आज बड़ा हो चला है 
अपनी स्वतंत्र अस्मिता को
 पहचानते हुए 
नए नए दोस्त ,नयी नयी बातें 
कंप्यूटर सॉफ्टवेयेर्स ,
मोबाइल ऐप्स का ज्ञान 
घर की जिम्मेदारियां संभालना 
अपना होमवर्क खुद करना 
स्कूल के क्रिया कलापों में
 बढ़ चढ़ के हिस्सा लेना 
विभिन्न प्रतियोगिताएं में पदक लाना 
उसकी दुनिया फैलती जा रही है 
और मैं सिमटती जा रही हूँ 
निर्भर हो रही हूँ उस पर 
नयी जानकारियों के लिए 
बहुत अच्छा  क्यों लगता है 
जब वो कहता है 
"क्या माँ -आपको ये भी नहीं पता?"
अद्भुत लगता है 
अपने बच्चे को बड़ा होते हुए देखना !

                      डॉ मंजुश्री गुप्ता 

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