शुभचिंतक
मन के विचार
कुछ बुरे कुछ अच्छे
गुत्थम गुत्था हो जाते हैं
जैसे डिब्बे में बंद
अलग अलग रंगों के
रेशमी धागों के लच्छे
तुम एक कुशल कशीदाकार की तरह
अपने शब्दों के मखमली स्पर्श से
धीरे धीरे धीरज से सुलझाती हो
अलग अलग धागों को !
कभी गांठों को तोड़ती भी हो
अपने कठोर शब्दों से
थोडा दर्द जरूर होता है
मगर विचारों के रेशमी धागे
सुलझ जाते हैं
दिखने लगते हैं धागों के अलग अलग रंग
और वे फिर तैयार हो जाते हैं
जीवन वस्त्र पर
सुन्दर नयी फुलकारी के लिए !
मंजुश्री
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