Tuesday, April 16, 2013


शुभचिंतक 

मन के विचार 
कुछ बुरे कुछ अच्छे 
गुत्थम गुत्था हो जाते हैं 
जैसे डिब्बे में बंद 
अलग अलग रंगों के 
रेशमी धागों के लच्छे 
तुम एक कुशल कशीदाकार की तरह 
अपने शब्दों के मखमली  स्पर्श से 
धीरे धीरे धीरज से सुलझाती हो 
अलग अलग धागों को !
कभी गांठों को तोड़ती  भी हो 
अपने कठोर शब्दों से 
थोडा दर्द जरूर होता है 
मगर विचारों के रेशमी धागे
 सुलझ जाते हैं 
दिखने लगते हैं धागों के अलग अलग रंग
 और वे फिर तैयार हो जाते हैं 
जीवन वस्त्र पर  
सुन्दर नयी फुलकारी  के लिए !
                            मंजुश्री 

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