Thursday, May 23, 2013

आम आदमी 

अर्थशास्त्रीय सिद्धांतों की भूलभुलैया 
 और आंकड़ों की बाजीगरी में 
गुम  हो जाता है 
आम आदमी !
हर पांच वर्ष में 
नयी योजना बनती है 
हर साल बजट आता  है 
साल दर साल 
गरीबी हटाओ ,रोजगार बढाओ 
और इंक्लूसिव ग्रोथ 
के नारे लगते हैं 
किन्तु खुद को जहाँ का तहां
खड़ा  पाता  है 
आम आदमी !
वृद्धि दर बढती है 
किन्तु आम आदमी की 
पॉकेट कटती है 
बढ़ते भ्रष्टाचार और महंगाई 
की चक्की में 
पिसता चला जाता है 
आम आदमी !
शहर में दौड़ती कारों 
ऊंची अट्टालिकाओं 
और महंगे मालों के बीच 
नून ,तेल ,लकड़ी भी जुटा नहीं पाता है 
आम आदमी !

                                      मंजुश्री 

3 comments:

  1. ऊंची अट्टालिकाओं
    और महंगे मालों के बीच
    नून ,तेल ,लकड़ी भी जुटा नहीं पाता है
    आम आदमी !

    अक्षरश: सच कहा आपने ... बेहतरीन अभिव्‍यक्ति

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  2. कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
    इस तरह से इसे करें ....
    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

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  3. धन्यवाद सदा ....

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