दौड़
मन की थाह न ली तो क्या?
इधर उधर बाहर को दौड़े
घर की बात न की तो क्या?
हर एक को खुश करने में
खुद की ख़ुशी नहीं पहचानी
दुनिया भर को वक़्त दिया
अपनों को दिया बिसार तो क्या?
धन ,पद ,यश और काम की दौड़े
मंजिल कभी मिली है क्या?
क्या राजा क्या रंक धरा पर
अंत सभी का एक हुआ ..
मंजुश्री
धन्यवाद सदा ....बहुत बहुत धन्यवाद सदा ....मेरी एक पुस्तक, मौन का संवाद ' प्रकाशित हुयी हैय़दि अप अपना पता मेरी ईमेल ईद guptamanjushri@gmail.com पर दें तो मैं उसे आप को पोस्ट करना चाहूंगी
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