Monday, January 27, 2014

वृद्ध जन -मील का पत्थर 

समय की बहती धार -लगातार
कल जो युवा थे आज वृद्ध हैं 
आज तुम युवा हो -कल वृद्ध होगे 
इनके चेहरे की झुर्रियां 
जीवन अनुभवों की पंक्तियाँ
लिखी कहानियां हजार
जिंदगी की सड़क मील का पत्थर हैं ये
न समझो इन्हे बेकार- लाचार
झांको इनकी आँखों के सागर में
छलकता कितना निर्मल प्यार
इनके कांपते हाथों की उँगलियों को पकड़ कर
कभी तुमने चलना सीखा था
आज इन्हे तुम्हारी उँगलियों की है दरकार
जिंदगी की चूहा दौड़ में
आज तुम दौड़ रहे हो
ये ठहर गए हैं-लड़खड़ा रहे हैं
कल तुम्हारे कदम भी लड़खड़ाएंगे
तुम्हारे बच्चे दौड़ते नजर आएंगे
उन्हें भी तो दो -कुछ संस्कार
अपना जीवन ही लोगे उबार
ज्यादा नहीं चाहिए इन्हे
बस तुम्हारा थोडा सा वक़्त,थोड़ी संवेदना
थोडा सा प्यार दुलार !
ये कम सुनते हैं तो क्या?
तुम तो सुन सकते हो -
इनकी खामोश पुकार
थोडा सा रुको
इनके पास आकर -बैठो तो एक बार !

डॉ मंजुश्री गुप्ता

3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना बुधवार 29 जनवरी 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. कृपया वर्ड व्हेरिफिकेशन का ऑप्शन हटा देवें

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  3. हार्दिक आभार आदरणीय Digvijay Agrawal ji

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