Wednesday, March 21, 2012

बदलती सोच



 
 
ये  है  मिस्टर  एक्स  
पुरानी  generation   का  आदमी 
utopia में  जीने  वाला 
goody goody 
पडोसी  एक  गाल   जह 
थप्पड़  मारता
तो  दूसरा  गाल  आगे  कर  देता 
पडोसी  अब  लात  घूंसे  चला  रहा 
Mr X
हँसते  मुस्कुराते 
मन  ही  मन  कुढ़ते 
खा  रहा 
 मगर  एक  दिन .......
पडोसी  ने  जब  फिर  थप्पड़  मारा 
तो  उसके  दोनों  गालों  पर  पड़े 
थप्पड़  दनादन 
और  गालियों  की  बौछार 
ये  कौन ? 
Master y
Mr X का    सुपुत्र 
नयी   generation
practical,confident
जंग  को  तैयार 
'बेवजह  कोई  एक  मारे 
तो  तुम  दो  मारो  से  है 
उसका  सरोकार '
पडोसी  अब  दूर  दूर  तक 
नजर  नहीं  आ  रहा 
घर  में  अमन  चैन  छा रहा 
हा  हा  हा !

 
 
 


Sunday, March 18, 2012

सृष्टि


प्रभु ,अद्भुत हँ
 तेरी सृष्टि के चमत्कार
क्या खूब है वो क्षण
जब प्रस्फुटित होती है  कोई मुकुलिका 
होता है पुष्प तैयार
महक उठता है जीवन उपवन
होते हैं जब दो ह्रदय एकाकार 
अद्भुत है वो क्षण 
जब गूंजती है-
निश्छल किलकारी
मधुर संगीत सी
किसी के सूने आंगन में
होते हैं स्वप्न साकार
सुदर है वो क्षण 
जब जन्म लेती है कविता
होता है किसी ह्रदय में मधुर भावों का संचार 
या फिर कोई सुन्दर सा चित्र
बनता है कोई चित्रकार
या फिर गूंजती है मधुर संगीत की झंकार
इन क्षणों से ही अर्थ है जीवन का 
अन्यथा जीवन है बेकार 



बेटे को माँ की सीख


बेटा,
आज मैं बहुत खुश हूँ
की आज तुम अपनी जीवन संगिनी लाने  जा रहे हो
इस शुभ  दिन पर 
तुम्हे खूब सारा प्यार और आशीर्वाद
साथ ही कुछ  बातें -याद रखने की
हमेश याद रखना 
की तुम्हारी पत्नी हंसती मुस्कुराती 
गुडिया या शो पीस 
या तुम्हारे इशारों पर नाचने वाली 
कठपुतली नहीं
वह एक जीता जगता इंसान है 
बिलकुल तुम्हारी तरह
उसके भी अपने अरमान और आदतें हैं
उसे भी तुम्हारी कुछ बाते बुरी लग सकती हैं
उसके माता पिता ने उसे पढाया लिखाया 
डॉक्टर बनाया
घर के कामो के साथ वो कमाना भी जानती है
किन्तु मुझे गर्व है कि
मैंने भी तुम्हे गृह कार्य में दक्ष बनाया है
और तुम भी सारे काम कर सकते हो
घर के हर काम में उसका हाथ बटाना
पति पत्नी गाड़ी के दो पहिये होते हैं
गाड़ी में एक पहिया ट्रक का 
और एक साइकिल का हो तो 
वह चल सकती है क्या?
इसलिए अपनी अर्धांगिनी को भी
पूर्ण अवसर देना
आगे बढ़ने का ,प्रगति का 
उसकी उन्नति से जलना मत
न उसकी राह में रोड़े अटकाना
तुम दोनों एक दुसरे पर बोझ बन कर नहीं
मित्रवत रहो 
जीवन भर एक दुसरे का साथ निभाते हुए
याद रखना
अगर तुम उससे सीता बनने कि उम्मीद कर रहे हो तो
तुम्हे भी मर्यादा पुरुषोत्तम राम बनना होगा
मैं स्वयं जानती हूँ कि
और मैं आज  सास नहीं 
एक बेटी कि माँ बनने जा रही हूँ !
पुनः तुम दोनों को तुम्हारे विवाह पर 
अनेक शुभकमनाये ! 



  

Thursday, March 8, 2012

सीता की व्यथा


मिला था मुझे 
 कितना मजबूत स्कंध 
मर्यादा पुरोषोत्तम श्री राम का 
चाहे फूलो की शैय्या हो 
या काँटों की राह
मैं तो थी उनकी 
मूक अनुगामिनी
किन्तु शोक
छलनामय पुरुष
साधुवेश में 
कैसे न हो विश्वास 
हर ली गयी
'फिर भी मन में थी ये आस
मेरे स्वामी निश्चय ही 
उबारेंगे मुझे इस शोक से
करती रही अश्रु सिंचित प्रतीक्षा
सुदीर्घ समय 
कट गया
राम आये 
मुझे उबारा 
किन्तु पुरुष !
छलनामय ही रहा 
या मैं ही करती रही 
भोला विश्वास
क्यों लांछन मेरे सतीत्व पर?
राम की मर्यादा या अहम्
ऊंचे उठ गए
मेरी निष्ठां ,पवित्रता और मूक प्रतीक्षा से
ली अग्नि परीक्षा
फिर भी मिला मुझे वनवास
यही था मेरे लिए नियति का उपहार
युग बीत गए
आज भी सीतायें
देती जा रही हैं अग्नि परीक्षा 
गर्भ से मृत्यु पर्यंत.....
जाने कब बदलेगा ये समाज!



Wednesday, March 7, 2012

आओ टी वी सीरिअल बनाये


आओ टी वी सीरिअल बनाये
जनता को उल्लू बनायें
क का की की 
कु कू के कै
को कौ कं कः......
क की बारहखड़ी    में
किसी से भी शुरू करें 
कोई भी नाम 
अपने  सीरियल का .
ले आयें एक अदद सास
और एक बहू
या कई सासें और कई बहुएँ
पहनाएं घर में 
बनारसी साडी 
सोने के भारी गहने
 फिर शुरू करें जोड़ तोड़ 
छल प्रपंच
अफयेर मर्डर कास्मेटिक सर्जरी 
मरे हुए आदमी को फिर से जिन्दा करें
दूसरे नाम के साथ
आधे घंटे के सीरिअल को स्पोंसर कराएँ
पंद्रह मिनट के विज्ञापन से
पैसे की झड़ी लगायें
हमारा काम और नाम 
जरूर चल निकलेगा 
क्योंकि जनता जनार्दन तो है
भोली भाली
सीरिअल के कलाकारों के 
ग्लिसरीनी आंसुओं से द्रवित होने वाली
देखती ही रहेगी सीरियल को अनंत काल
और हम होते रहेंगे माला माल 





क्या हैं स्त्रियाँ


त्याग ही नहीं
इच्छा और आकांक्षा भी.
मुस्कान ही नहीं
आंसू और ईर्ष्या  भी 
तन ही नहीं
मन और भावना  भी.
भोग्या ही नहीं
जननी और भगिनी भी.
कामना  ही नहीं
प्रेम और ममता भी 
रति ही नहीं
दुर्गा और  सरस्वती भी.
स्त्रियाँ......
देवी या डायन  नहीं 
मनुष्य हैं 
सिर्फ मनुष्य.



Monday, March 5, 2012

अंतर्बोध

कोशिश करती हूँ
हर पल को जीने की
हर पल से थोड़ी सी
खुशियों की चोरी की
मगर होता है अक्सर ऐसा क्यूं?
कई पल दे जाते हैं
दर्द का उमड़ता घुमड़ता एहसास
खुद से प्रश्न करती हूँ
ऐसा क्यूँ?
उत्तर मिलता है
हर पल को कहाँ बनाया है मैंने अपना
वो तो गिरवी है औरों के पास
नियंत्रण नहीं मेरा किसी पर
इसलिए मिलते हैं घात प्रतिघात
अपनी  ख़ुशी के लिए औरों पर
निर्भर न बन
सूरज की तरह  न सही
 दीप सी जल
रौशनी दे औरों को
उर्जा और ख़ुशी का अजस्र श्रोत तो है
मेरे ही पास!