त्याग ही नहीं
इच्छा और आकांक्षा भी.
मुस्कान ही नहीं
आंसू और ईर्ष्या भी
तन ही नहीं
मन और भावना भी.
भोग्या ही नहीं
जननी और भगिनी भी.
कामना ही नहीं
प्रेम और ममता भी
रति ही नहीं
दुर्गा और सरस्वती भी.
स्त्रियाँ......
देवी या डायन नहीं
मनुष्य हैं
सिर्फ मनुष्य.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ ही एक सशक्त सन्देश भी है इस रचना में।
ReplyDeleteआप का ह्र्दय से बहुत बहुत
ReplyDeleteधन्यवाद,
मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए......... मंजुश्री जी
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ReplyDeleteकल 30/10/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत बहुत धन्यवाद यशवंत जी.
ReplyDeleteसटीक प्रस्तुति
ReplyDeleteकृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
धन्यवाद वर्ड वेरिफिकेशन को मैं हटा नहीं पाई....फिर कोशिश करूंगी.
Deleteखूब ...सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब,बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
ReplyDeletehttp://www.manjushrigupta.blogspot.in/2012/09/blog-post_13.html
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद मदन मोहन जी .
ReplyDeleteबस उन्हें सिर्फ मनुष्य ही मान लिया जाए ...
ReplyDeleteसच में !