Thursday, November 7, 2013

शाश्वत सत्य

गंगा के मणिकर्णिका
और हरिश्चन्द्र घाट पर
होता है- जीवन के
शाश्वत सत्य का साक्षात्कार
कभी न बुझने वाली आग का
पड़ता प्रतिबिंब लहरों के आर-पार
हमारे जीवन का दर्पण ही तो है
चाहे कितने ही करो अविष्कार
या कोशिश करो हजार बार-बार
मगर इस सत्य को
बदल नही सकता कोई चमत्कार
जमा कर लो कितने ही हीरे मोती
या हवेलियां और गाड़िया हजार
अन्त में यहां तक ही पहुंचायेंगे
तुन्हे कन्धे ही चार

Wednesday, November 6, 2013

वसुंधरा या द्रौपदी ?

मैं -
पृथ्वी,भू,वसुंधरा!
जो करती तेरा पालन पोषण 
नहीं ,
तूने तो बना दिया है मुझे द्रौपदी !
दु शासन  और दुर्योधन की तरह 
करते मेरी मर्यादा का क्षरण 
मेरे वस्त्रों -
वृक्षों ,खेतों ,जंगलों को 
काट -
निरंतर करते 
मेरा चीर हरण !
यह भी नहीं सोचते 
जीव जंतु क्या खायेंगे 
कहाँ  लेंगे शरण ?
अपनी अनंत प्यास को बुझाने 
मेरे नयन    नीर का 
निरंतर करते दोहन शोषण 
विकास के नाम पर 
कोई कसार नहीं छोड़ी तूने 
नष्ट किया पर्यावरण !
रे मनुज!
अपनी क्र्रूर हरकतों से 
बाधा दिया है ताप तूने
 मेरे मस्तिष्क का 
अब जल तू स्वयं ही 
झेल वैश्विक ऊष्मीकरण !
आशा नहीं अब मुझे 
कि मुझे बचाने  आयेगा 
कोई कृष्ण स्वयं किया है मैंने 
प्रतिशोध का वरण 
खोल ली है केश राशि 
तू देख मेरा विकराल रूप!
हाँ महाभारत !अकाल ,बढ़ ,प्रलय 
ज्वालामुखी  विस्फोट 
सुनामी केदारनाथ धाम विभीषिका !
अब कोई रोक नहीं सकता तुझे 
तेरे पापों का दंड भोगने से 
रे स्वार्थी मनुज !
तेरा अब होगा मरण 
द्वद्व या दम्भ?


 शहर के व्यस्तम चौराहे पर
लालबत्ती के हरे होने का इंतजार
रूकी हुयी कार..............
खिड़की के बंद शीशे के आर-पार
अचानक उभरता है एक चेहरा
नही दो चेहरे..............
एक दुर्बल कृशकाय नार..............
पहने कपडे़ तार-तार..............
और गोद में बच्चा
रोता जार-जार ,टपकाता हुआ लार !
हाथ फैलाये मिन्नतें करती हजार !
पत्नी से मैं कहता हूॅ..............
इन्हें कुछ दे देते है यार !
पत्नी ने आंखे तरेरी..............
तुम्हे समझाया हजार बार
क्या पढ़ते नही अखबार !
शहर में ”गैंग” चल रहे है इनके
खिड़की के शीशे मत खोलना
कहीं यं गले की चेन न कर ले पार !
गाडियों की भीड़ से बचती बचाती
गिड़गिड़ाती रही वह बार-बार
तब तक लाल बत्ती हरी हो गई
और हम हो गये चौराहे के पार !
किन्तु मन में था  द्वद्व
और अनजाना सा भार

                    डॉ मंजुश्री गुप्ता




             दौड़ कहाँ ?

सारे तीरथ करके आये 
मन की थाह न ली तो क्या?
इधर उधर बाहर को दौड़े 
घर की बात न की तो क्या?
हर एक को खुश करने में 
खुद की ख़ुशी नहीं पहचानी 
दुनिया भर को वक़्त दिया 
अपनों को दिया बिसार तो क्या? 
धन ,पद ,यश और काम की दौड़े 
मंजिल कभी मिली है क्या?
क्या राजा क्या रंक धरा पर 
अंत सभी का एक न क्या ?
                                     डॉ मंजुश्री गुप्ता      
                                                                 संवेदना 

                                      “आज दस अप्रैल हो गयी.....बस पांच   दिन और रह गए हैं.हैप्पी बिस्तर पर पड़े पड़े दीवार पर फडफडाते   कैलेंडर को देख कर  हिसाब लगा रहा है.पंद्रह अप्रैल को उसका चौदहवाँ जन्म दिन जो है.कितने दिनों से यह हिसाब चल रहा है.रविवार के दिन बिस्तर पर पड़े रहना कितना अच्छा  लगता है .कहीं जाने की कोई जल्दी नहीं.
रसोई से अचानक तेज तेज आवाजें आने लगी.मम्मी काम वाली बाई चन्द्रकला  को डांट  रही हैं,'कल तूने फिर नागा किया,इस महीने पूरी पांच छुट्टियाँ कर चुकी ,ऊपर से एडवांस मांग रही है."
"भाभी जी, पिंकू की तबियत बहुत खराब है ,कल अस्पताल में भर्ती किया है. आप डांटेंगी  इसलिए काम पर आ गयी."
"तेरे तो रोज रोज के बहाने हैं   , आज ये कल वो....कोई एडवांस नहीं मिलेगा"
"भाभी जी बस पांच सौ रुपये दे दो, अब नहीं लूंगी"
"चल तू काम    कर जल्दी ....देखती  हूँ."
हैप्पी  बिस्तर से उठ कर बाथरूम में चला गया .पता नहीं मम्मी ने एडवांस दिया या नहीं?
                                                 विशाल के पापा लन्दन से उसके लिए एक्स बॉक्स लायें हैं.इस बार बड़ी मुश्किल से उसने पापा को मनाया है पी एस टू लेने के लिए.....कंप्यूटर पर घिसे पिटे गेम्स  में अब मन नहीं लगता.मम्मी पापा उसके कंप्यूटर प्रेम से दुखी हैं.वे बार बार कहते....हमारे ज़माने में ये सब दुनिया भर की चीजे कहाँ थी?इन बच्चों को तो जितना दिला दो कम है."हैप्पी और उसकी बहन लकी मम्मी पापा के लाडले हैं .जो भी चाहते हैं मिल जाता है.शहर के सबसे महंगे स्कूल में पढ़ते हैं दोनों.
                                        आज हैप्पी का छोले कुलचे खाने का मन था.पापा कहीं बाहर जा रहे थे मम्मी ने कहा,"आते समय बेकरी से कुलचे  ले आना .पापा कुलचों  के तीन पैकेट ले आये.मम्मी ने छोले पहले ही बना लिए थे .दोपहर के खाने के समय मम्मी ने कुलचों को सेंकने के लिए निकाला तो उनमे फफूंद लगी हुयी मिली.मम्मी पापा से लड़ने लगी ,"आपसे एक काम भी ठीक से नहीं होता .देख कर तो लाते"
                                                   पापा ने भी ऊंची आवाज में कहा,'तुम्हे तो लड़ने का बहाना चाहिए ,अब मैं पैकेट  के अन्दर कैसे देखता?"पापा मम्मी आपस में कितनी बुरी तरह से लड़ते हैं,कभी किसी बात पर ,कभी किसी बात पर!हैप्पी और  लकी में झगडा होने पर डांटने लगते हैं.हैप्पी को उनका यह दोहरा व्यवहार कभी समझ में नहीं आता.
अंततः मम्मी ने चावल बनाये और दोपहर में उन लोगों को चावल छोले खा के काम चलाना पड़ा.
                                           शाम को चन्द्रकला बर्तन धोने आई तो माँ ने कुलचे के तीनो पैकेट उसे देते हुए कहा ,"ले जा चन्द्रकला गाय  को डाल देना .
बाई ने उन्हें झपट के उठा लिया ,हम चाय से खा लेंगे भाभी जी ,बड़े अच्छे लगते हैं."
हैप्पी को अजीब सा लगा .बोला"अरे ,बीमार पड़ जाओगी तुम!"
मगर वो मुस्कुराती हुयी कुलचों का  पैकेट ले कर चली गयी.
                                                      हैप्पी अक्सर देखता है,मम्मी बासी रोटियाँ और ब्रेड ,फ्रिज में रखी दो  तीन दिन की बासी  सब्जियां बाई को दे देती हैं और वो ख़ुशी ख़ुशी ले जाती है.दोनों भाई बहन के तो फ्रेश सब्जियां भी गले नहीं उतरती .आये दिन पिज्जा ,बर्गर ,पास्ता ,डोसा  आइसक्रीम खाने के लिए रेस्टोरेंट के चक्कर लगते हैं .पांच सौ का बिल तो आम बात होती है.
                                                   दूसरे दिन फिर चन्द्रकला काम पर नहीं आयी .पापा के एक पुराने दोस्त का परिवार दिल्ली से आने वाला था .मम्मी बहुत नाराज हो रही थी.सुबह हैप्पी से कहा ,"जरा देख कर तो आ,चन्द्रकला क्यों  नहीं आई? उसे बुला कर ले आ."
                                                  हैप्पी को जाने का जरा भी मन नहीं था.वह फेस बुक पर अपने दोस्त से चैटिंग कर रहा था. मगर वह मम्मी के गुस्से से डरता था .मन मार के उसे जाना पड़ा. कालोनी  के पीछे कच्ची बस्ती में बाई  का घर था.घर क्या था कच्ची सी  झोपडी थी.दरवाजे के अन्दर हैप्पी पहली बार गया.अन्दर सामान के नाम पर कुछ बर्तन और चटाइयां .एक चटाई पर उसका बेटा  पिंकू लेटा  हुआ था वह बुखार से तप रहा था .चन्द्रकला उसके माथे की पट्टियाँ बदल रही थी.उसे देख कर बोली ,”भैया जी ,मेरे पास पैसे नहीं थे इसलिए अस्पताल से इसे घर ले आई.
                                                   पास में ही उसके दो और छोटे बच्चे खेल रहे थे. एक दूसरी चटाई पर उसका पति नशे में धुत्त पड़ा था .उसके  मुंह  से शराब की तीखी बू आ रही थी.
ये सब देख कर हैप्पी बिना कुछ  बोले वापस आ गया.
माँ ने पूछा,"क्या कहा बाई ने?"
हैप्पी ने कहा,"कुछ नहीं"
माँ ने कहा ,"आएगी कि नहीं?'
हैप्पी  ने कहा,"मैंने उससे बोला ही नहीं ,उसके लड़के की तबियत खराब है"
माँ उसे डांटने लग गयी, "अरे बुला के तो लाता ,मैंने तुझे किसलिए भेजा था?"
हैप्पी चुपचाप अपने कमरे में चला गया.
                                             थोड़ी देर बाद मम्मी पापा पर गुस्सा उतारने लगी . पापा भी तेज आवाज में बोलने लगे .  मेहमान आये तो वे फिर से सभ्य बन गए.हैप्पी और लकी उनके बच्चों को अपने खिलौने और कंप्यूटर गेम्स  दिखाते रहे .मम्मी के घर के काम चन्द्रकला के न आने से बढ़ गए थे.वो कुछ चिढ़ी हुयी थी, मगर  ऊपर से सब से हंस हंस के बात करती रहीं .
                                             अब चौदह तारीख भी आ गयी.कल हैप्पी का जन्मदिन है.उसने बहुत पहले से कह रखा है कि वह अपने दोस्तों को मैकडोनाल्डस में पार्टी देगा.शाम को पापा ऑफिस से जल्दी घर आ गए.पापा बड़ी कंपनी में इंजिनियर हैं बच्चों की और पत्नी की हर इच्छा चुटकियों में पूरी कर देते हैं.पूरा परिवार शौपिंग  के लिए निकला .साथ में लम्बी सी लिस्ट!
                                               मुख्य बाजार में चौराहे के लाल ट्रैफिक   सिग्नल पर पापा ने कार रोकी तो काले काले गंदे से बच्चे सामने की खिड़की पर लटक गए.और पैसे देने की याचना करने लगे .बिखरे हुए बाल,चीथड़ों में लिपटा शरीर और हाथ में किसी देवता की फ्रेम   में मढ़ी हुयी तस्वीर!मम्मी सामने देखती हुई यूं बैठी रही जैसे उन्हें देखा ही न हो .ए सी कार के शीशे चढ़े हुए थे.तब तक सिग्नल हरा हो गया बच्चे अभी तक शीशे से चिपके हुए थे .पापा ने चिढ कर अन्दर से ही  एक मुक्का कार पर मारा और कार आगे बढा दी .बच्चे सहम  के पीछे हट गए.
                                                 बाजार जा कर   मम्मी ने अपने लिए तीन हजार रुपये की साड़ी ली.  लकी ने जींस और टॉप लिया ,उसमे भी ढाई हजार लग गए.पापा ने भी एक शर्ट खरीदी .
मम्मी ने हैप्पी से कहा" तू भी कोई ड्रेस ले ले ,कल तेरा बर्थडे है"हैप्पी ने कहा ,मेरे पास पहले ही इतने कपडे हैं ,मैं बाद में लूँगा."मम्मी ने अजीब नजरों से उसे घूरा.
                                                 उसके बाद वो लोग एक मॉल में गए.लकी मचल गयी कि बंजी जम्पिंग  करनी है.सौ रुपये ले कर जम्पिंग वाले ने उसे बेल्ट बांध के लटका दिया .जम्पिंग करते समय वह डर गयी और उतारने के लिए चिल्लाने लगी.सौ रुपये पानी में चले गए.
                                                 अब लकी की जिद थी डोमिनोस में पिज्जा खाने की.मम्मी का मन भी खाना बनाने का कहाँ करता है,फटाफट तैयार हो गयी.डबल चीज पिज्जा,चोको लावा केक,कोक  सब मिला कर करीब आठ सौ का बिल आया .डोमिनोस की खिड़की से दिखा....लकी की उम्र से छोटा एक लड़का बंजी जम्पिंग के प्लेटफार्म पर कूद कूद कर पोंछा लगा रहा था .जम्पिंग करने वाला उसे डांट रहा था."ठीक से लगा पोंछा ,हमेशा गन्दा छोड़ देता है"
डोमिनोस से निकलने पर पापा ने पूछा   "अब कहाँ चलना है?"
मम्मी ने कहा ,"हैप्पी को पी एस टू चाहिए सोनी शॉप पर चलते हैं.हैप्पी ने कहा,"छोडिये पापा ,मैं अभी नहीं ले रहा"
मम्मी ने कहा ,"इतने दिनों से जिद कर रहा है ,अब क्या हो गया?"
बेकरी पर बड़े केक की जगह उसने छोटे केक का आर्डर दिया.मम्मी नाराज भी थी और आश्चर्यचकित भी!
                                                घर आ  के उसने मम्मी से कहा ,”मम्मी आप घर पर  ही कुछ अच्छा सा  बना देना मैं मैकडोनाल्डस में पार्टी नहीं दे रहा .सिर्फ मेरे दो -तीन अच्छे दोस्त ही आएंगे.
मम्मी जानती थी जिद्दी और अपने मन का लड़का है . जो एक बार ठान लिया वही करेगा.सिर्फ उस पर चिल्ला के रह गयी.
                                            दूसरे दिन सुबह लकी और मम्मी पापा ने उसे जन्म दिन की शुभ कामनाएं दी.पापा मम्मी ने पूछा ,तूने कुछ भी नहीं लिया ,तुझे क्या चाहिए?"
हैप्पी ने कहा,"मैंने कल पूरे दस हजार रुपये बचाए न,वो आप मुझे दे दीजिये"
मम्मी -पापा को उसकी जिद के आगे झुकना ही पड़ा.
                                        नौ बजे चन्द्रकला बर्तन धोने के लिए आई.चेहरा रुआंसा हो रहा था .लग  रहा था रात भर सोयी नहीं है.उसने कहा,"भाभी जी पिंकू की तबियत ज्यादा ख़राब हो गयी है"
हैप्पी ने दस हजार रुपये उसकी और बढ़ाते हुए कहा ,"लो चन्द्रकला ,पिंकू का इलाज अच्छे से करा  लेना और उसके लिए खाने  की अच्छी चीजे ले लेना.
मम्मी अवाक् हो हैप्पी का मुंह  देखती रह गयी.
                                                                                                                            डा मंजुश्री गुप्ता
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