मन का आकाश
रात भर घेरे रही
कालिमा मुझे….
द्वन्द ,निराशा ,चिंता ,
ईर्ष्या ,द्वेष ,कटुता
क्रोध और अहंकार की !
करवटें बदलती रही
मन ही मन न जाने
किन किन अज्ञात शत्रुओं से
लड़ती उलझती रही .....
किन्तु जबरदस्ती निकल पड़ी
प्रातः भ्रमण को ....
कचरे के ढेर पर फेंका
निराशाओं और चिंताओं को
सुबह की शीतल हवा उड़ा ले गयी
मेरा क्रोध और अहंकार ....
रास्ते में तालाब के पानी से धोयी
कटुता की मैल
तेजी से आती हुयी
रेलगाड़ी के सामने फेंका
द्वन्द ,ईर्ष्या और द्वेष को
कालिमा छंट चुकी थी
पहाड़ के पीछे से निकल आया था
चमकता सूरज
निर्मल स्वच्छ हो गया था
मन का आकाश!
रात भर घेरे रही
कालिमा मुझे….
द्वन्द ,निराशा ,चिंता ,
ईर्ष्या ,द्वेष ,कटुता
क्रोध और अहंकार की !
करवटें बदलती रही
मन ही मन न जाने
किन किन अज्ञात शत्रुओं से
लड़ती उलझती रही .....
किन्तु जबरदस्ती निकल पड़ी
प्रातः भ्रमण को ....
कचरे के ढेर पर फेंका
निराशाओं और चिंताओं को
सुबह की शीतल हवा उड़ा ले गयी
मेरा क्रोध और अहंकार ....
रास्ते में तालाब के पानी से धोयी
कटुता की मैल
तेजी से आती हुयी
रेलगाड़ी के सामने फेंका
द्वन्द ,ईर्ष्या और द्वेष को
कालिमा छंट चुकी थी
पहाड़ के पीछे से निकल आया था
चमकता सूरज
निर्मल स्वच्छ हो गया था
मन का आकाश!
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